Monday, August 22, 2011

अन्ना, तुम डरना मत!

वो आयेंगे
कभी बाण
कभी कृपाण
कभी ढाल लेके,
कभी सुनहरी ज़िन्दगी के सपने
कभी मौत का सामान लेके,
मनाएंगे
बरगालायेंगे
डरायेंगे कभी
अन्ना, तुम डरना मत!

आएगी
रात काली कभी
रूप विकराल लेके
कभी दिन चढ़ेगा
सब साजो सामान लेके,
सांझ की शान्ति डराएगी कभी
कभी सुबह
डराएगी नयी पहचान लेके
अन्ना, तुम डरना मत!

भूख तो भूख है  
सताएगी कभी
आँखों में अँधेरा सा
अंगो में सिकुडन लाएगी कभी,
सूखे होठों पे
करेगी निराशा तांडव
और कानो पे छा जाएगी
ख़ामोशी कभी,
ये जंग है
आएगी सब रंग
सब तूफ़ान लेके
अन्ना, तुम डरना मत!

दूर वहाँ
रात के पार
कोई बुलात्ता है
हमारे ना सा होने पर
बेबस चिलाता है,
बैठा किसी कोने में
सुबकता है कभी
कभी बेतहासा
अंधेरे के आर-पार दौड़ लगाता है,
एक देश
एक समाज
अन्ना, तुम्हे बुलाता है! 

तुमने जगाया है हमें
अहसास हमारे होने का
कराया है हमें
देखो
सड़क के आर-पार
हर गली
चौराहा
हर बाज़ार
बच्चा बूढा
हर जवान
बहने को तैयार है  नसों में तेरी
अन्ना, तुम डरना मत! 




No comments:

Post a Comment