Sunday, August 21, 2011

थोड़ी-थोड़ी सबसे खफा है जिंदगी!


हर हादसे की गवाह
नहीं होती है
हथेलिया
गहरे ज़ख्मो के निशाँ
जिस्म पर नहीं होते
कभी लड़खड़ा कर
तो कभी फिसलकर भी
गिर सकते है राहगीर
हर ठोकर के जिंम्मेदार
पत्थर नहीं होते


हर कोने में
जला कर रखो दीप कोई
अंधेरो में
परछाइयां नहीं ठहरती
हर ज़ज्बात का
अंजाम नहीं आसू
खारे पानी से कुछ
तन्हाईयाँ नहीं घुलती


हर चेहरे पे है
निशान जुदा-जुदा
हर आइने पर
धुल नहीं होती
क्या गिला
तू अकेला नहीं है
सेहरा में
थोड़ी-थोड़ी सबसे खफा है जिंदगी!


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