Saturday, August 20, 2011

इस शहर में...

इस शहर में
भूख है
बहुत
गरीबी है 
विशाल महलो में
सजे मंदिरों में
जगमगाती सडको पर
फुटपाथो पर
दिलो में
दिमागों में

इस शहर में
चमक है
बहुत
रौशनी है
पुते चेहरे पर
जलती निगाहों में
पसीने  की बूंदों में
सजे बाजारों में
शहर पार के झोपड़ो में



इस शहर में
शोर है
बहुत
धमा चोकड़ी है
श्रृंगारित सांस्कृतिक केन्द्रों में
आलीशान समाजिक नजारों में
भीड़ भरे नुक्कड़ो पर
जिंदगी की कतारों में
दहशत के पदर्शन पर

इस शहर में
सभ्यता है
बहुत
संस्कृति है
विविध समारोहों में
अवांछित विचारो में
श्रृंगारो में
हर तरह की ज़िन्दगी के  अदभुत नजारों में
बंद दरवाजो में
संवेदानाओ में
आडम्बरो में 
मानवता के विभिषक पर्चारो में


इस शहर में
और है
बहुत
कुछ और भी है
घुटन है
जलन है
तड़प है
सिसक है
सूखे जिस्म है
फैलते शरीर है
चीखे है
कराहटे है
स्वार्थ है
पाप है
झूटे आसू है
सूखे बोल है
छल है
कपट है

इस शहर में
वो सब है
जो जमीन पर है
और जो आसमान पर नहीं!

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