Saturday, October 29, 2011

हर साख पे पत्ते नहीं होते!


छाव है तो धूप भी होगी कहीं
हर साख पे पत्ते नहीं होते

दामन से छिटक गए कुछ तारें, अफ़सोस कैसा
चंद तारों के टूटने से आसमां खली नहीं होते

जो अपने है तो वो दूर जाएँगे कहाँ
जो चले गए वो अपने नहीं होते

क्या पता किस-किस ने पकड़ी ये ऊँगली कब, कहाँ तक
उंगलियों पर उंगलियों के निशान नहीं होते

दो आंसु उनके लिए भी, जिनके हम कोई ना थे
कुछ बुंदो से समुंदर खाली नहीं होते!



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