दिन में
रात में
कुछ खास है
दोनों में कुछ सांठ-गांठ है
दिन में
आँखें चुन्धियाई
चाँद ने
आके आँख मिलाई
तेज धूप ने
जो जलन दी
ठंडी चांदनी
आकर सहला गई
दिन के उजाले ने
चकनाचूर कर दिया था
जिस स्वप्न को
रात फिर से लग गयी
उसी स्वप्न को बुनने को
एक और
अजीब बात हो गयी
दिन में
रात में
एक भीड़ में
अकेला घूमता रहा था
दिन भर
रात को साया भी कहीं
ढूंढे ना मिला!
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