Tuesday, October 4, 2011

फिर क्यों...???

भीड़ में भी जैसे
ढूँढती सी खुद को नज़र आती हो
उलझी सी अपनी उलझी जुल्फों सी
क्यों कभी डरे ख्वाब सी नज़र आती हो
उड़ने को बेताब कभी
और कभी रूकने को तरसती नज़र आती हो
कभी हवा में हवा
कभी बूँद में बूँद 

फिर क्यों कभी ठहरे पानी सी नज़र आती हो!
तुम खुश  हो जानते है सभी
फिर क्यों कभी सबसे भीगी आंखें चुराती नज़र आती हो!

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