मैं ही बस गमज़ब्त नहीं, वो भी सिसक रहा होगा कहीं
उस शहर की सडकों पर दिन-रात खून सा बहा करता था मैं!
वो शहर जो मेरी सांसो में था
खून सा दोड़ता था शरीर में
मेरी पहचान मेरी आन-बान था
वो शहर जिससे परे दुनिया ना थी
वो शहर पराया हो गया
बिछुड़ गया
बिखर गया!
ना टपकता है आँखों से
ना सिमटता है आहों में
एक बूँद भर याद है, ज़िन्दगी भर के ख्वाब की!
superb emotions ...
ReplyDeleteबेहद आकर्षक...
ReplyDeleteThank u Madhav n 'talk radio'!
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