मै
एक आइना
शायद
कोई
जादुई आइना
बहुत से
चेहरे
जो
बहुत अपने
बहुत
जाने-पहचाने
थे कभी
अब
आकर
मेरे सामने
खड़े हो जाते है
मै
उन्हें
पहचान
नहीं पता हूँ
कोई खुद को
मेरी
माँ बताता है
कोई...
और कोई...
फिर
वो सब
चेहरे
कभी
आँखों से आसू भर कर
कभी गुस्सा भर कर
कभी चिल्लाकर
और
डराकर कभी
देखना
चाहते है
वो तस्वीरे
जो मेरे
वश में नहीं बनाना
उनको दिखाना
मै
स्तब्ध
देख रहा हूँ
बद्तले चेहरों
के नाटक को
और
जी-तोड़
प्रयास
कर रहा हूँ
अपने
अस्तित्व
को
बनाये
या
बचाए रखने का
साथ ही साथ
दे
रहा हें मै
दिलासा
खुद को
रिश्तो को
झूटे
ना
होने की
और
जानता भी हूँ
की झूटी दिलासे
टूट
जाती है
हलके से
झोखे से ही
राइ के पहाड़ की तरह!
Bahut sundar...Great imagination, lovely!
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